डोरेमॉन, शिनचैन, वंडर वुमन से अभिभावक परेशान
जनता जनार्दन डेस्क ,
Apr 11, 2014, 13:46 pm IST
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रायपुर: देश के बच्चों के दिलों पर राज करने वाले टीवी के कार्टून और एनिमेटेड पात्र अभिभावकों के लिए तनाव का कारण बनते जा रहे हैं। बच्चों को ये कार्टून पात्र जहां बहुत पसंद आते हैं, वहीं अभिभावकों को ये पात्र और उसके साथियों द्वारा बीच-बीच में पेश की जाने वाली फूहड़ता पर एतराज है।
डोरेमॉन, शिनचैन, वंडर वुमन सहित कई ऐसे पात्र हैं, जिनसे बच्चों की मांएं खासी परेशान हैं। कार्टून शो के पात्रों को बच्चे नहीं भूलते, बल्कि शो में हुए कारनामे और बोले गए डायलॉग को लंबे समय तक दोहराते रहते हैं। इस बात को शहर के मनोवैज्ञानिक भी खतरनाक बताते हैं। रायपुर की शैलबाला अग्रवाल ने बताया कि उनकी बेटी आरवी को डीसी एनिमेटेड चैनल पर आने वाला एनिमेटेड शो 'वंडर वुमैन' बेहद पसंद है, जबकि खुद उन्हें बिल्कुल भी नहीं। वह कहती हैं कि इस शो में मुख्य भूमिका निभाने वाली पात्र स्वीमिंग कास्टूयम पहने हुए नजर आती हैं। बीच-बीच में ऐसे शब्दों का उच्चारण भी किया जाता है, जो फूहड़ता को दर्शाता है। इसके अलावा उनका बेटा 'टॉम एंड जैरी' देखने के बजाय हवा में सीन करने वाले शो को काफी पसंद करता है। वह बाद में सोफे या टेबल से कूद कर उस सीन को दोहराने की कोशिश करता है।मौजूदा समय में बच्चों के लिए डोरेमॉन कार्टून सबसे ज्यादा पसंदीदा पात्र बन गया है। इसमें नोबिता और डोरेमॉन की केमेस्ट्री बच्चों को बेहद पसंद है। नोबिता की खुशियों को बढ़ाने के लिए डोरेमॉन कुछ भी कर देता है। इस बीच बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड के बीच होने वाले संवाद को भी शामिल किया जाता है, जो अभिभावकों को बिल्कुल पसंद नहीं है। भिलाई की संगीता कुलकर्णी ने बताया कि उनका बेटा शौविक बहुत ज्यादा कार्टून देखता है। हर बच्चे की तरह उसे भी शिनचैन और डोरेमॉन बहुत पसंद आता है। कार्टून पात्र शिनचैन बहुत ही अजीब किस्म का बच्चा है, जो हर वक्त अपने अभिभावकों, शिक्षकों और दोस्तों को परेशान करता है। ऐसे में बच्चों पर भी इस कार्टून को देखकर बुरा प्रभाव पड़ता है। रायपुर की मनोवैज्ञानिक डॉ. वर्षा वरवंडकर का कहना है कि बच्चों के शोर-शराबे से बचने के लिए शुरू-शुरू में अभिभावक उन्हें कार्टून या एनिमेटेड शो देखने में व्यस्त कर देते हैं। बच्चे शांत होकर देखते रहे हैं, मगर यह स्थिति उनके लिए खतरनाक है। वे शो में दिखाए जाने वाले कैरेक्टर में मग्न हो जाते हैं, लेकिन सामाजिकता से दूर हो जाते हैं और उनकी शारीरिक गतिविधिां मंद पड़ जाती हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को बहुत ज्यादा कार्टून नहीं देखने देना चाहिए। इसकी जगह उन्हें अच्छी कहानी वाली किताबें या फिर उपन्यास पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। बहरहाल, अपने छोटे बच्चों की पसंद और कार्टून देखने की जिद के आगे बेबस अभिभावक इस पसोपेश में हैं कि वे क्या करें? यदि वे बच्चों को कहानियों की किताब देते हैं तो भी बच्चे पढ़ने की जहमत उठाना नहीं चाहते। उन्हें तो टीवी पर कार्टून पात्रों को एकटक देखते रहने में ही आनंद आता है। |
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