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क्या मिट्टी के बर्तन प्रदर्शनी की शोभा मात्र रह जाएंगे?

क्या मिट्टी के बर्तन प्रदर्शनी की शोभा मात्र रह जाएंगे?

नई दिल्ली: आज भौतिकता की दौड़ मे पुरानी हस्तकला से कुंभकारों द्वारा बने मिट्टी के बर्तनों को छोड़ कर लोग प्लास्टिक, कांच एवं अन्य धातुओं से बने बर्तनों तथा अन्य सामग्री का प्रयोग करने लगे हैं। शासन की उपेक्षा का शिकार कुंभकारों का अपना पुश्तैनी कारोबार मंदी की मार के साथ ही बंद होने की कगार पर खड़ा है। यही कारण है कि इस वर्ग के लोग अपना पुश्तैनी धंधा छोड़कर अन्य रोजगारों की ओर रुख कर परिवार का भरण-पोषण करने पर मजबूर हो रहे है।

शासन द्वारा लगातार अन्य उद्योगो को दिए जा रहे प्रोत्साहन से मिट्टी के पात्र जैसे कुल्हड़, चाय पीने के कप, पेयजल को शुद्ध एवं ठंडा रखने वाले घड़े, सुराही आदि को उपेक्षित करके आम आदमी प्लास्टिक, कांच, फाइवर आदि के बर्तनों का प्रयोग दैनिक एवं विशेष अवसरों पर करने लगे। कालांतर की भौतिक दौड़ से प्रेरित आमजन कुंभकारों के घड़े आदि का प्रयोग बंद करके ग्रीष्मकाल में ठंडे पानी के लिए विद्युत संचालित फ्रिज आदि को प्रयोग में लाने लगे। यही कारण है कि धीरे-धीरे मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की संख्या भी कम होती जा रही है।

हस्तशिल्पी अर्थात कुंभकारों का कहना है कि आज मिट्टी की कमी एवं लकड़ी आदि की महंगाई से कच्ची मिट्टी के बर्तनों को पकाने आदि का काम काफी महंगा पड़ता है, जिससे चार गुने दामो में बिक्री करना पड़ रहा है।

नगर क्षेत्र में आस्था का केंद्र बड़े भीट बाबा परिसर में नवरात्रि के अवसर पर लगने वाले मेले में मिट्टी के घड़े आदि की दुकानें लगती हैं। क्षेत्रीय आमजनों की मान्यता है कि यहां से घड़ा लेना धार्मिक आस्था से जुड़ा है। बुजुर्ग बताते हैं कि क्षेत्र मे पहले मेले और ग्रीष्म कालीन की शुरुआत के समय लगने वाले मेले में घड़े आदि की खरीदारी पुराने समय से ही चली आ रही है। यह आज परंपरा बनकर आस्था का कारण बन गई है।

उनका कहना है कि आज छोटी-बड़ी बाजारों में घड़े, सुराही आदि की दुकानें यदा-कदा ही देखने को मिलती है। बीते समय में 10 से 15 रुपये में मिलने वाला घड़ा अब 60 से 70 रुपये में बेचा जा रहा है। इस आधुनिक दौड़ में भी पुरानी हस्तकला के प्रेमी आज भी मौजूद है और गर्मी के मौसम मे पानी के लिए घड़े का प्रयोग कर रहे हैं।

पुस्तैनी व्यापार करने वाले कुंभकारों को लगातार मिल रही शासन एवं सामाजिक उपेक्षा के कारण धीरे-धीरे पुरानी हस्तकला का लोप होता जा रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि कुछ समय बाद यही मिट्टी के बर्तन प्रदर्शनी की शोभा मात्र रह जाएंगे।

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