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दक्षिण भारतीयों का भक्ति पर्व ओणम, जानें इसका महत्‍व

दक्षिण भारतीयों का भक्ति पर्व ओणम, जानें इसका महत्‍व नई दिल्ली: 'ओणम' केरल का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है जो मलयाली कैलेंडर के अनुसार चिंगम माह में और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अगस्त-सितम्बर में मनाया जाता है। यह मॉनसून की समाप्ति व फसलों की कटाई शुरू होने का द्योतक है।

मलयालियों का मानना है कि राजा बलि को अपने साम्राज्य और अपनी जनता से गहरा लगाव था और वह इसी लगाव के चलते हर वर्ष पृथ्वी पर हर वर्ष आते हैं। भगवान विष्णु ने अपने वामन अवतार में राजा बली को साल में एक बार पाताल लोक से यहां आकर अपनी प्यारी जनता से मिलने की अनुमति दे दी थी। राजा बलि के आगमन की खुशी में ही यह पर्व मनाया जाता है।

केरल में तो यहां तक कहा जाता है कि ओणम के लिए यदि घर का कुछ बेचना भी पड़े तो कोई हर्ज नहीं है। ओणम के दौरान केरल खुशी, उत्साह और आनन्द का केन्द्र बन जाता है। प्रकृति की सुन्दरता अपने चरम पर होती है, वातावरण मे उत्सव का माहौल होता है, लोग आनंदित होते हैं और भरपूर मनोरंजन करते हैं! यह ओणम त्योहार का ही अवसर होता है जिसे केरलवासी सबसे अधिक प्यार करते हैं। ओणम त्योहार 10 दिनों तक चलता है।

‘ओणम’ मलयाली कैलेण्डर कोलावर्षम के पहले महीने छिंगम यानी अगस्त-सितंबर के बीच मनाने की परंपरा चली आ रही है। ओणम के पहले दिन जिसे अथम कहते हैं, से ही घर-घर में ओणम की तैयारियां प्रारंभ हो चुकी हैं। दस दिनी उत्सव का समापन अंतिम दिन जिसे थिरुओनम कहते हैं, को होगा। मान्यता है कि थिरुओनम के दिन ही राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने के लिए आएंगे। इस वर्ष थिरुओनम 9 सितंबर को मनाया जा रहा है।

कहीं फूलों से बनी रंगोली, तो कहीं नारियल के दूध में बनी खीर। इतना ही नहीं गीत-संगीत और खेलकूद के उत्साह से भरा माहौल। यह सब कुछ हो रहा है मलयाली समाज में। महान राजा बलि के घर आने की खुशी में ओणम पर्व मनाया जा रहा है। ओणम के दिन हम सभी महिलाएं अपने पारंपरिक अंदाज में ही तैयार होती हैं।

जिस प्रकार ओणम में नए कपड़ों की घरों की साज-सज्जा का महत्व है उसी प्रकार ओणम में कुछ पारंपरिक रीति-रिवाज भी हैं जिनका प्राचीनकाल से आज तक निरंतर पालन किया जा रहा है। जैसे अथम से ही घरों में फूलों की रंगोली बनाने का सिलसिला शुरू हो गया।

महिलाएं तैयार होकर फूलों की रंगोली जिसे ओणमपुक्कलम कहते हैं, बनाती हैं। ओणमपुक्कलम विशेष रूप से थिरुओनम के दिन राजा बलि के स्वागत के लिए बनाने की परंपरा है। फूलों की रंगोली को दीये की रोशनी के साथ सजाया जाएगा। जिसे त्रिकाककरयप्पउ कहते हैं। इसके साथ इसके साथ ही ओणम में आऊप्रथमन यानी की खीर भी विशेष है।

ओणम में केरल आने वाले सैलानियों और ओणम के भव्य आयोजन को देखते हुए केरल सरकार ने 1961 में ओणम को राजकीय त्योहार घोषित किया है। उसके बाद से ओणम की भव्यता और बढ़ गई है।

ओणम की कथा:

पुराणों में वर्णित है कि प्राचीनकाल में राजा बलि नामक दैत्य राजा हुआ करते थे। उनकी अच्छाइयों के कारण जनता उनके गुणगान करती थी। उनका यश बढ़ते देखकर देवताओं को चिंता होने लगी तब उन्होंने भगवान विष्णु से अपनी बात कही। देवताओं की बात सुनकर विष्णु भगवान ने वामन रूप रखा और राजा बलि से दान में तीन पग भूमि मांग ली।

वामन भगवान ने दो पग में धरती और आकाश नाप लिया। तीसरा पग रखने के लिए उनके पास जगह ही नहीं थी। तब राजा बलि ने अपना सिर झुका दिया। वामन भगवान ने पैर रखकर राजा को पाताल भेज दिया। लेकिन उसके पहले राजा बलि ने साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने आने की आज्ञा मांग ली।

सदियों से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि ओणम के दिन राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने आते हैं, इसी खुशी में मलयाली समाज ओणम मनाता है। इसी के साथ ओणम नई फसल के आने की खुशी में भी मनाया जाता है।
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