राहुल ने पूछा, हार के जिम्मेदार कौन!

जनता जनार्दन संवाददाता , Apr 06, 2012, 13:58 pm IST
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राहुल ने पूछा, हार के जिम्मेदार कौन! सुल्तानपुर: अमेठी के लोग अपने सांसद राहुल गांधी की कार्यशैली और कामकाज पर भी टिप्पणियां करने लगे हैं। उप्र में पार्टी की हार के कारणों को तलाशते राहुल गांधी क्या अमेठी में हुई हार के लिए कुछ अपनी भी जिम्मेदारी तय करना चाहेंगे? इस हार के लिए उम्मीदवारों के चयन से लेकर संगठन की कमजोरियों तक की खूब चर्चा हो रही है। बेशक इसमें सच्चाई हो सकती है। लेकिन इसी के साथ अमेठी के लोग अपने सांसद राहुल गांधी की कार्यशैली और कामकाज पर भी टिप्पणियां करने लगे हैं।

सांसद के रूप में वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए कुछ उल्लेखनीय नहीं कर पाए हैं। उनकी राजनीतिक हैसियत के कारण लोगों को उनसे काफी उम्मीदें थीं। लेकिन सांसद के रूप में दूसरे कार्यकाल के मध्याह्न में वे अपनी चमक खोते नजर आ रहे हैं। चुनाव में पार्टी के लिए भी लाभकारी साबित नहीं होने के कारण उनके क्षेत्र के लोग निराश हैं।

सोनिया गांधी ने 2004 में राहुल के लिए अमेठी की सीट खाली की थी। पहली बार सांसद निर्वाचित होने के शुरुआती दो सालों में राहुल ने तकरीबन हर महीने अमेठी की यात्राएं की थीं। इन दौरों में लोगों से मिलकर या फिर स्कूलों, अस्पतालों में घूमकर वे आम आदमी की जरूरतों व तकलीफों को जानने की कोशिश करते थे।

लेकिन पार्टी के भीतर अपनी भूमिका के विस्तार के साथ राहुल की अमेठी यात्राओं का अंतराल भी बढ़ने लगा और फिर ये यात्राएं रस्मी ढंग से निपटने लगीं। कार्यकर्ताओं को बार-बार चेहरा दिखाने की कोशिश की जगह उन्हें गांवों में काम करने की नसीहतें दी गई। गांवों से समस्याओं की फेहरिस्त लेकर लौटे ये कार्यकर्ता उनके निदान के लिए किस चौखट पर दस्तक दें, इसका जवाब न पहले था और न आज है।

राजीव गांधी और कैप्टन सतीश शर्मा के अमेठी के सांसद रहने के दौरान पार्टी के भीतर स्थानीय नेताओं की ऐसी जमात खड़ी हुई थी जो गांधी परिवार के नाम और उसकी आड़ में खूब फली-फूली। राहुल गांधी ने उन्हें भले किनारे कर दिया हो लेकिन वे असरदार कार्यकर्ताओं की नई टीम तैयार करने में विफल रहे। उनकी अमेठी की अधिकांश यात्राएं स्वयं सहायता समूहों के कामकाज की जानकारी लेने के बीच निपट जाती है।

उनके सुरक्षा घेरे के चलते आम आदमी की उन तक पहुंच मुमकिन नहीं होती। चुनाव के दिनों को छोड़ कर बाकी दिनों में वे सभा सम्मेलनों से दूर रहते हैं। फिर भी जब संवाद के अवसर आते हैं तो उनका एक ही जवाब होता है कि राज्य में हमारी सरकार नहीं है। वे अपने दूसरे हाथ को मजबूत करने यानी केंद्र की तरह राज्य में भी कांग्रेस की सरकार के लिए सालों से लोगों से अपील कर रहे थे। इस अपील को बाकी राज्य के साथ ही अमेठी के लोगों ने भी अनसुना कर दिया।

क्षेत्र की हर समस्या की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार पर डालने वाले राहुल गांधी अपनी दिल्ली की सरकार से भी अमेठी को कुछ विशेष नहीं दिला सके। नए उद्यमों के लिए जमीन देने में राज्य सरकार की आनाकानी का शोर मचता है लेकिन दशकों पुरानी मेडिकल कालेज योजना जमीन और अनापत्ति उपलब्ध होने के बाद क्यों ठंडे बस्ते में चली गई, इसका कोई जवाब नहीं है।

सार्वजनिक क्षेत्र की इस्पात कंपनी सेल ने बंद पड़ी मालविका का अधिग्रहण तो कर लिया पर इसे चालू करने की कोशिशों की मंद गति और रोजगार के सवाल पर स्थानीय लोगों की उपेक्षा का किसी के पास जवाब नहीं है। गुजरे साल तक सांसद निधि के छह करोड़ रुपए बचे हैं। इसमें नए साल की निधि जुड़ गई है।

राहुल गांधी अपनी ही निधि का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। पार्टी से जुड़े लोग बताते हैं कि प्रस्तावों के लिए राहुल की मंजूरी के लिए काफी इंतजार करना पड़ता है। किसी मामले में अगर जनता का ज्यादा दबाव होता है तो राज्यसभा सदस्य के नाते कैप्टन सतीश शर्मा की निधि से प्रस्ताव भिजवा दिए जाते हैं।

राहुल गांधी के क्षेत्र की देखभाल किसी राजनीतिक तंत्र के हवाले नहीं है। उनका निजी स्टाफ विकास से लेकर राजनीतिक मामलों तक को निपटाता है। दूर से बेहद प्रभावशाली समझे जाने वाले इन नजदीकी लोगों को मंत्रियों या अफसरों को सीधे चिट्ठी लिखने या टेलीफोन करने की इजाजत नहीं है।

बात दूसरी है कि राहुल गांधी को भेजी जाने वाली शिकायतें और मांग पत्र इन्हीं लोगों के हाथ में पहुंचती है। इस हालत में आमतौर पर अधिकांश शिकायतें अनुत्तरित रहती हैं। स्वाभाविक रूप से लोग इसके लिए सांसद को कोसते हैं।

विधानसभा चुनावों के विपरीत नतीजों के बाद कुछ उम्मीदवारों ने राहुल गांधी के प्रतिनिधियों पर निशाना भी साधा। परंतु क्या इससे राहुल गांधी की खुद की जिम्मेदारी कम हो जाती है। स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं को निष्क्रिय करके क्षेत्र को कंपनियों के अंदाज में मैनेजरों के हवाले करने का फैसला तो खुद उन्हीं का है। पार्टी को उत्तर प्रदेश में खड़ा करने का उनका अभियान फुस्स हो चुका है लेकिन साथ ही मजबूत गढ़ समझी जाने वाली अमेठी में भी नींव दरक रही है।

उनकी और उनके परिवार की वोट दिलाने की क्षमता पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। परंतु इस बार वे नतीजे 2014 के लिए अमेठी में खुद उनको भी सचेत रहने का संदेश दे रहे हैं। दूर दिल्ली में बैठकर अमेठी की हार की जिम्मेदारी के कुछ सतही कारण भले ढूंढ लिए जाएं लेकिन असलियत में राहुल को खुद इसकी जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी। उन्हें परिवार की दशकों   पुरानी विरासत अमेठी को नए सिरे से समझना और वहां के लोगों को मनाना होगा।
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