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काव्य-संग्रह 'अकेले नहीं हैं हम' का लोकार्पण
जनता जनार्दन डेस्क , Feb 25, 2015
सरस्वती रत्न एवं इंडिया एचीवमैंट अवार्ड से सम्मानित युवा कवि डाॅ. चन्द्र सैन के पहले काव्य-संग्रह 'अकेले नहीं हैं हम' का लोकार्पण कल 23वें विश्व पुस्तक मेला, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में किया गया।इस लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता डाॅ. जे.के. डागर द्वारा की गई। कार्यक्रम में रायपुर, छत्तीसगढ़ की महिला एवं बाल विकास विभाग की अध्यक्ष श्रीमती शताब्दी पाण्डेय मुख्य अतिथि थीं। इस अवसर पर श्री मुकेश गंभीर, श्री ओमेश बारुखी एवं हास्य कवि सी.एम. अटल विशिष्ट अतिथि थे। ....
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त्रेता युग के प्रथम अवतार थे वामन
जनता जनार्दन डेस्क , Sep 09, 2013
भागवत कथा के अनुसार, असुर राज बली अत्यंत दानवीर थे। दानशीलता के कारण बली की कीर्ति पताका के साथ-साथ प्रभाव इतना विस्तृत हो गया कि उन्होंने देवलोक पर अधिकार कर लिया। देवलोक पर अधिकार करने के कारण इंद्र की सत्ता जाती रही। ....
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जब फकीर को मिला अल्लाह का घर
यशपाल जैन , Feb 15, 2013
एक फकीर था। वह भीख मांगर अपनी गुजर-बसर किया करता था। भीख मांगते-मांगते वह बूढ़ा हो गया। उसे आंखों से कम दीखने लगा। एक दिन भीख मांगते हुए वह एक जगह पहुंचा और आवाज लगाई। किसी ने कहा, "आगे बढ़ो! यह ऐसे आदमी का घर नहीं है, जो तुम्हें कुछ दे सके।" ....
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..और बुद्ध की शरण में आ गया अंगुलिमाल
जनता जनार्दन डेस्क , Feb 07, 2013
अंगुलिमाल नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था वह लोगों को मारकर उनकी उंगलियां काट लेता और उनकी माला बनाकर पहनता था। इसी से उसका यह नाम पड़ा था। आदमियों को लूट लेना, उनकी जान ले लेना, उसके बाएं हाथ का खेल था। लोग उससे डरते थे। उसका नाम सुनते ही लोगों के प्राण सूख जाते थे। ....
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जब गुरु ने परखी शिष्यों की दृष्टि
मुनि नथमल , Jan 23, 2013
एक गुरु थे। उनके दो शिष्य थे। गुरु शिष्यों की परीक्षा लेना चाहते थे। उन्होंने एक शिष्य को बुलाकर पूछा, "बताओ, जगत कैसा है? तुम्हें कैसा लग रहा है?" उसने कहा, "बहुत बुरा है। सर्वत्र अंधकार ही अंधकार है। आप देखें, दिन एक होता है और रातें दो। दो रातों के बीच एक दिन। पहले रात थी। ....
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जब मनुष्य ने अपनी आयु बढ़वाई
मुकुलभाई कलार्थी , Jan 12, 2013
बहुत पुराने समय की बात है। एक दिन भगवान का दरबार लगा था। भगवान सभी प्राणियों की आयु निश्चित करने बैठे थे। इस बीच मनुष्य, गधा, कुत्ता और उल्लू चारों एक साथ भगवान के सामने हाजिर हुए। भगवान ने चारों को चालीस-साल की आयु दे दी। मनुष्य को भगवान का यह निर्णय पसंद नहीं आया। उसे बुरा लगा। उसने सोचा, ....
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.और बच गई संत अत्तारी की जान
मुकुलभाई कलार्थी , Jan 08, 2013
तुर्किस्तान और ईरान के बीच कई सालों से लड़ाई चली आ रही थी। तुर्किस्तान को बार-बार हार का मुंह देखना पड़ रहा था। किंतु एक दिन संयोगवश ईरान के प्रसिद्ध संत पुरुष अत्तारी साहब तुर्को के हाथ में पड़ गए। तुर्क तो ईरानियों से खार खाए हुए ही थे। इसलिए उन्होंने अत्तारी साहब को मार डालने की योजना बनाई। ....
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जब लक्ष्मी ने किया सच का सामना
रामनारायण उपाध्याय , Dec 31, 2012
एक बार लक्ष्मी को घमंड हो गया कि मैं सबसे बड़ी हूं। इस बात की जांच के लिए वह धरती पर पहुंचीं। एक मूर्तिकार के यहां अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति के साथ लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की मूर्तियां भी बिक्री के लिए रखी थीं। लक्ष्मी ने सरस्वती की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए कहा पूछा, "इसकी क्या कीमत है?" ....
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जब बुद्ध ने दिखाई सहनशक्ति
जनता जनार्दन डेस्क , Dec 16, 2012
बात उस समय की है जब महात्मा बुद्ध जंगली भैंसे की योनि भोग रहे थे। वह एकदम शांत प्रकृति के थे। जंगल में एक नटखट बंदर उनका हमजोली था। उसे महात्मा बुद्ध को तंग करने में बड़ा आनंद आता। वह कभी उनकी पीठ पर सवार हो जाता तो कभी पूंछ से लटक कर झूलता, कभी कान में उंगली डाल देता तो कभी नथुने में। ....
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क्षमा का आदर्श
श्री अरबिन्द , Dec 06, 2012
चंद्रमा धीरे-धीरे काले बादलों में से लुकता-छिपता निकल रहा था। वायु के साथ-साथ नदी नाचती,बल खाती जा रही थी। कहीं चांदनी छिटकी थी, कहीं अंधेरा छाया था। बड़ा ही सुंदर दृश्य था। चारों ओर ऋषियों के आश्रम थे। एक-एक आश्रम नंदन वन को मात करता था। हर एक ऋषि की कुटिया फूल के पेड़ों और बेलों से घिरी थी। ....
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ऐसे थे कवि अटलः 'रार नहीं मानूंगा' कहने वाले की जब 'मौत से ठन गई'
जनता जनार्दन संवाददाता , Aug 16, 2018
अटल जी बेहद जिंदादिल इनसान थे. ऊंचाई पर पहुंचकर भी गर्व ने उन्हें नहीं छुआ था. अटल बिहारी वाजपेयी अगर राजनेता और भारत के प्रधानमंत्री न भी होते तो भी एक कवि, पत्रकार और हिंदी सेवी के रूप में देश की अनन्य सेवा करने के लिए जाने-पहचाने जाते. अटल जी एक राजनेता के साथ ही बेहतरीन वक्ता और कवि के तौर पर पूरे देश में चर्चित रहे. ....
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कबीर बानी से बुनी कविताएं
अंनत विजय , May 27, 2014
हिंदी साहित्य जगत पर रचनात्मकता के संकट की बहुत बातें होती रहती हैं । नब्बे के दशक में राजेन्द्र यादव ने अपनी पत्रिका हंस के माध्यम से लेखन पर महसूस किए जा रहे इस संकट पर लंबी बहस चलाई थी । हंस में चलाई गई उस बहस से कुछ हासिल हुआ हो या नहीं लेकिन कुछ लेखकों ने नहीं लिख पाने पर अपनी सफाई पेश कर दी थी । दरअसल हिंदी में लेखऩ पर संकट से ज्यादा जरूरी बहस होनी चाहिए कि कविता, कहानी, उपन्यास के अलावा अन्य विषयों पर हिंदी में संजीदगी से कोई कृति क्यों नहीं रची जा रही है । ....
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जब ऋषि को हुआ पाप का बोध
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर , Jan 11, 2013
अंगार ने ऋषि की आहुतियों का घी पिया और हव्य के रस चाटे। कुछ देर बाद वह ठंडा होकर राख हो गया और कूड़े की ढेरी पर फेंक दिया गया। ऋषि ने जब दूसरे दिन नए अंगार पर आहुति अर्पित की तो राख ने पुकारा, "क्या आज मुझसे रुष्ट हो, महाराज?" ऋषि की करुणा जाग उठी और उन्होंने पात्र को पोंछकर एक आहुति उसे भी अर्पित कर दी। ....
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नाम बदलने से मतलब सिद्ध नहीं होगा
सत्यनारायण गोयनका , Dec 04, 2012
पुरानी बात है। किसी बालक के मां-बाप ने उसका नाम पापक (पापी) रख दिया। बालक बड़ा हुआ तो उसे यह नाम बहुत बुरा लगने लगा। उसने अपने आचार्य से प्रार्थना की, "भन्ते, मेरा नाम बदल दें। यह नाम बड़ा अप्रिय है, क्योंकि अशुभ और अमांगलिक है।" आचार्य ने उसे समझाया कि नाम तो केवल प्रज्ञप्ति के लिए, व्यवहार-जगत में पुकारने के लिए होता है। ....
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परनिंदा पतन की पहली सीढ़ी
बालशौरि रेड्डी , Sep 11, 2012
मनुष्य के आंतरिक शत्रु अरिषड् वर्ग हैं, किंतु बाह्य शत्रु सप्त व्यसन हैं- नारी व्यामोह, द्यूतक्रीड़ा, सुरापान, आखेट, परनिंदा, अधिकार का दर्प और अपव्यय। समाज को स्वस्थ, सुखी, संपन्न, सुदृढ़ तथा सुचरित्र बनाने के के लिए मनीषियों एवं आचार्यो ने मानव के लिए एक नैतिक आचार-संहिता का विधान किया है। समाज के निर्माण और विकास में इन मूल्यों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ....
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कहानी: मर्ज
डॉ. आशा पाण्डेय , Sep 09, 2012
मेरे गाँव की इसी सुन्दरता से मुग्ध होकर दो किलोमीटर दूर स्थित कोट (किला) के शहजादे जब दिल्ली से कोट में पधारते थे तो शाम की सैर में कभी-कभी दो चार लट्ठधारी सेवकों के साथ खंडहर पर खेलने आ जाते थे। मेरे गाँव के बच्चे, जिनमें मैं भी शामिल होता था, निहाल हो जाते थे और उनके पीछे-पीछे भागते हुए उनकी इच्छा से उनके खेल में शामिल हो जाते थे । ....
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जब बहेलिया बना सत्यतप
बालशौरि रेड्डी , Sep 09, 2012
मानव जीवन एक पहेली है। जीवन की इस लम्बी यात्रा में कुछ लोगों के तहत ऐसी घटनाएं अचानक घटित हो जाती हैं, जो उनकी जीवनधारा को ही बदल देती हैं। कब किसके जीवन में कैसी घटनाएं घटित हो सकती हैं, हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। सत्यतप की कथा इसका उत्तम उदाहरण है। ....
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शहद को कभी भी गर्म करके नहीं खायें वरना होगा नुकसानः डॉ रवि गोगिया, वरिष्ठ आयुर्वैदिक चिकित्सक
सबकी पुकार जय श्री राम, भक्ति गीत
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