
काश, हो आबादी पर नियंत्रण!
जय प्रकाश पाण्डेय ,
Jul 11, 2017, 6:19 am IST
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![]() हमारे देश में जनसंख्या की वृद्धि में धर्म, जाति, शिक्षा, सभ्यता, वर्ग, संस्कार सबकी अपनी-अपनी भूमिका है. धर्म के अलंबरदार, अनुयाइयों की गिनती, तो सियासतबाज इसे वोट की ताकत से जोड़कर देखते हैं. यही वजह है कि किसी ठोस नीति के अभाव में देश के आर्थिक विकास का बोझ केवल कमाऊ और करदाता वर्ग पर बढ़ता जा रहा है. आरक्षण या सब्सिडी जैसे मसले केवल भारत ही नहीं अमेरिका जैसे विकसित देशों के लिए भी एक समस्या हैं. भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने चेतावनी दी है कि बढ़ती जनसंख्या पर अगर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो धरती पर मानव जीवन का वजूद ही मिट जाएगा. उन्होंने चेतावनी दी है कि अगली शताब्दी के आने तक अगर हम विलुप्त नहीं होना चाहते तो मानवता को बहु-ग्रहों की प्रजाति यानी दूसरे ग्रहों पर कॉलोनी बनानी होगी. पर क्या यह इतना सहज है? स्टीफन ने पिछले साल भविष्यवाणी की थी कि पृथ्वी पर जीवन के लिए शायद 1,000 साल ही बचे हैं, इसलिए वह मंगल ग्रह पर मानव उपनिवेश के बारे में नए दस्तावेजों के साथ फिर से हाजिर होने वाले हैं. पर क्या अंतरिक्ष में जीवन इतना आसान होगा? क्या वह इतना सस्ता और सुगम होगा कि आम जन की भी पहुंच में हो. पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन भी जनसंख्या विस्फोट की देन है. महामारी और उल्कापिंडों के हमले अलग समस्या हैं. लेकिन दूसरे ग्रहों पर हमारी कॉलोनी एक महान और रोमांचक कल्पना तो हो सकती है, लेकिन इसके सचाई में तब्दील होने की संभावना बेहद कम है? फिर क्या वाकई यही एक विकल्प है? अगर खतरा इतने बड़े हैं, और हमारे पास वक्त भी है, तो हम अभी से जनसंख्या नियंत्रण क्यों नहीं कर रहे? जनसंख्या वॄद्धि को देश के विकास की सबसे बड़ी बाधा मानने वाली संस्था 'टैक्सपेयर्स एसोसिएशन ऑफ भारत' देश में आबादी नियंत्रण पर राष्ट्रीय कानून बनने को लेकर अभियान छेड़े हुए है. इस संस्था का मानना है कि भारत में जिस तेज गति से आबादी बढ़ रही है, वह जनसंख्या नियंत्रित करने वाले 'राष्ट्रीय कानून' के बिना नहीं थमेगी. इस संस्था ने 'भारत फॉर पॉपुलेशन लॉ' के नाम से एक ऑन लाइन अभियान भी चला रखा है. इस जनजागरुकता अभियान के मुखिया मनु गौड़ का दावा है कि आजादी के बाद देश की आबादी चार गुना बढ़ गई है. आजादी के समय की 36 करोड़ आबादी वाला देश 132 करोड़ का हो गया है: अनुमान है कि भारत की जनसंख्या 1.2% की वार्षिक दर से बढ़ेगी और 2050 में 199 करोड़ पहुंच जाएगी. खास बात यह है कि 'भारत का करदाता संघ' नामक समूह ने काफी समय से 'दो-बच्चों की नीति' अपनाने के लिए देश भर में अभियान चला रखा है. भारत की आबादी की बढ़ती रफ्तार के बीच इसके चीन से आगे निकल जाने की अंदेशे के बीच इस अभियान का मानना है कि देश के आर्थिक विकास में करदाताओं के पैसे के उचित उपयोग के लिए जरूरी है कि देश के सभी राज्य 'दो-बाल नीति' अपना लें. अभियान के मुखिया मनु गौड़ के मुताबिक असम सरकार की यह मसौदा नीति अगर सभी राज्यों में वहां की जरूरतों के अनुसार ड्राफ्ट होकर कानून की शक्ल ले ले, तो यह जनसंख्या नियंत्रण के लिए मील का पत्थर साबित होगी. इसके लिए उनका संगठन सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख रहा है. अभी तक उनके इस अभियान में अजय देवगन, सुनील शेट्टी, प्रियंका चोपड़ा और वीरेन्द्र वीरेंद्र सहवाग जैसी मशहूर हस्तियों के साथ दो लाख से अधिक लोग जुड़ चुके हैं. संस्था ने ठीक 'विश्व जनसंख्या दिवस' के दिन 'भारत फॉर पॉपुलेशन लॉ' के नाम से एक डिजिटल अभियान भी छेड़ा, जिसमें एमएस स्वामिनाथन, योगेश्वर दत्त, गीता फोगट, सुरेश वाडेकर, लेफ्टिनेंट जनरल ( रिटायर्ड) अरुण साहनी और र्वि त्रिपाठी जैसी शख्सियत शामिल हुईं. इस अभियान के कर्ताधर्ता मनु गौड़ का कहना है कि 'करदाताओं की कमाई पर बेरोजगारों को ढोने की नीति बंद हो जाए और सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए कठोर कानून बना दे, तो हमारी आधी समस्या हल हो सकती है. करदाताओं के इस समूह का मानना है कि भारत में जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार आर्थिक विकास के लाभोंं को बेकार कर रही है. संस्था की भविष्यवाणी है कि 2050 तक दुनिया की आबादी में भारत का हिस्सा 17% से बढ़कर 20% हो जाएगा. भारत की जनगणना रिपोर्टों को देखने पर इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि करदाता समूह की भविष्यवाणियां कई मामलों में सटीक साबित हुई हैं. जनसंख्या वृद्धि की तुलना में हम अगर देश की विकास दर को देखें तो वह 1971 और 1981 के बीच भले ही समान रही हो, लेकिन उसके बाद हर दशक में उत्तरोत्तर गिरावट आई. आजादी के पहले दशक में जनसंख्या लगभग 21% बढ़ी, पर 1961 और 1971 के बीच इसमें 24.8% की वृद्धि हुई. 1981 और 1991 के बीच इसमें 23.87% की बढ़ोतरी हुई, 2001 और 2011 के बीच आबादी 17.7% बढ़ गई. पर विकासदर उस अनुपात में नही रहा. वाकई जनसंख्या विस्फोट का खतरा उससे बड़ा है, जैसा स्टीफन बता रहे. हमारे पास हजार साल नहीं हैं, न ही इस काल्पनिक सिद्धांत में कोई दम है कि मंगल को पृथ्वी की कॉलोनी बना दिया जाए. धरती की तुलना में मंगल की जहरीली हवा, खराब मिट्टी, भयंकर ठंड के बीच अगर हम टिक भी गए तो स्टीफन के ही मुताबिक मंगल के वायुमंडल को अपने सांस लेने लायक बनाने में हमें करीब 100,000 साल लग सकते हैं. मतलब अगर मंगल पर रिहाइश की गुंजाइश हो भी गई तो धरती निवासी वहां नियमित देखभाल पैकेजों, सिलिंडर और मास्क के साथ ही जीएगा, जिसका खर्च उठाना आम आदमी के वश की बात नहीं होगी. फिर अभी यह केवल कल्पना है. क्या यह बेहतर नहीं कि हम हकीकत में जनसंख्या नियंत्रण के उपायों में लग जाएं और इसी अभियान को गति देकर धरती पर जीवन को बचा लें. ' विश्व जनसंख्या दिवस' पर आबादी नियंत्रण के संकल्प में कोई बुराई तो नहीं.
जय प्रकाश पाण्डेय
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