
जन-गण-मन के बीच ओबामा
जय प्रकाश पाण्डेय ,
Jan 26, 2015, 2:04 am IST
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![]() पर जिन्होंने भी राजपथ पर गणतंत्र दिवस समारोह की कवरेज देखी, उन्हें यह संतोष जरूर हुआ होगा कि कोई भी हमारी आजादी, गणतंत्र की शान तिरंगे की बराबरी नहीं कर सकता, भले ही वह दुनिया के सबसे ताकतवर देश का मुखिया ही क्यों न हो. ओबामा, बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के दोस्त हैं, 'भारत', जिसे अमेरिका भी दुनिया का अपनी तरह के ही खुले समाज वाला लोकतंत्र मानता है, और जिसकी नजर भारतीय बाजार पर आज से नहीं, बल्कि उदारीकरण के दौर से ही है. ऐसे समय में जब पाकिस्तान ने ओसामा बिन लादेन को पनाह देकर और अमेरिका ने ओबामा की रहनुमाई में ही पाकिस्तान के भीतर घुसकर अलकायदा मुखिया की हत्या कर दी, और पाकिस्तानी हुक्मरान चाह कर भी अपने अंदरूनी हालातों के चलते 'अमेरिका-पाकिस्तान' के बीच की अविश्वास की खाईं को पाट नहीं सकते, तब भारत एशिया में अमेरिका के लिए एकलौती आस के रूप में उभरा है. हम और हमारी मीडिया चाहे जितना मुगालता पाल लें, यह तय है कि अमेरिका की दोस्ती किसी व्यक्ति विशेष से नहीं, बल्कि भारत में कार्यपालिका के उस मुखिया से है, जो उसके लिए मौकों और बाजार के नए द्वार खोल सके. भाजपा की नीतियां और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चित रूप से अमेरिका के लिए इस मामले में अपने पूर्ववर्तियों से ज्यादा मुफीद साबित होंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का भारतीय दौरा और प्रधानमंत्री से उनकी कथित 'ट्यूनिंग' इससे अधिक कुछ भी नहीं. जिन लोगों ने अमरिकी राजनीति और वहां के समाज का अध्ययन किया है, वे यह अच्छी तरह जानते हैं, कि अमेरिकी व्यवस्था में कुरसी पर चेहरे बदलने से नीतियां नहीं बदल जातीं. हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि अमेरिकी राष्ट्रपति तो दूर की बात एक अदना भारतीय मूल का अमेरिकी गवर्नर तक अपनी पहचान को 'भारत'के साथ जोड़ने पर खुलेआम नाराजगी जता देता है और कह देता है, मैं और हमारे पूर्वज अगर भारत से प्यार करते तो वहीं रहते, अमेरिका नहीं आते. हम अमेरिकी बनने अमेरिका आए थे,'भारतीय मूल का अमेरिकी' बनने नहीं. यहां इस उद्धरण का मतलब सिर्फ इतना ही है कि भारत सरकार और मीडिया ने जिस तरह ओबामा के भारतीय दौरे की हाईप बनाकर हमारे 'गणतंत्र दिवस' की अस्मिता को अनजाने ही सही नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, वह ठीक नहीं है. अतिथि का सम्मान करना अच्छी बात है, पर उसके सामने बिछ जाना, अपनी ही कमजोरी को उजागर करता है. अफसोस की यह सब उन लोगों द्वारा हो रहा है, जो भारतीय अस्मिता का गुणगान करते नहीं थकते. आलम यह था कि सुरक्षा के नाम पर इस बार पत्रकारों तक को २६ जनवरी के पास नहीं दिए गए. राष्ट्रपति के 'एट होम' तक की लिस्ट में फेर बदल कर दिया गया. अमेरिकी राष्ट्रपति ने १९५० से चली आ रही परंपरा को तोड़कर अपने साथ लाई गई कार में ट्रैवल कर एक तरह से 'होस्ट'का सम्मान नहीं किया. हमारी सरकार ने इसे किन हालातों में स्वीकार किया, यह समझ से परे है. लगता है वर्तमान दौर में हमारे 'मान- सम्मान- स्वाभिमान' के प्रतीकों से खिलवाड़ करने का दौर सा चल पड़ा है. अगर समय रहते ही इसे रोका नहीं गया तो यह हमारी आजादी के महान नेताओं की 'गणतंत्र' को सर्वोपरि रखने की मूल भावना को ठेस पहुंचाएगा. अभी से कुछ लोगों ने २६ जनवरी और १५ अगस्त को 'राष्ट्रीय उत्सव' की बजाय 'राष्ट्रीय अवकाश' के रूप में मनाना शुरू भी कर दिया है. ट्रवल एजेंसियों ने विशेष पैकेज देने शुरू कर दिए हैं. यह प्रवृत्ति गलत है. इस पर कोई रोक लगाए या नहीं, 'जन' को खुद तय करना होगा कि अगर वह 'गण' में नहीं रहा, तो 'तंत्र' ही उसे खा जाएगा... फिलहाल 'जनता जनार्दन', FacenFacts और हमारी सहयोगी पत्रिका 'न्यू इंडिया' की ओर से २६ जनवरी २०१५ को 'गणतंत्र दिवस' की ढेर सारी शुभकामनाएं..
जय प्रकाश पाण्डेय
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