
ये तो होना ही था !
जय प्रकाश पांडेय ,
Dec 08, 2013, 4:38 am IST
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![]() कहने को नतीजे भाजपा उन्मुख दिखते हैं , पर ऐसा है नहीं. आम आदमी पार्टी की सफलता से कांग्रेस और भाजपा, इन दोनों 'व्यक्ति' और 'प्रतीक' पूजक दलों को ही नहीं, बल्कि जो भी सियासत कर रहे हैं, उन सभी को यह सबक लेना होगा की प्रजातंत्र में अंततोगत्वा प्रजा ही राजा है. बाकी सब नौकर, वो भी टेम्परेरी, केवल 5 सालों के लिये या हद से हद 10-15 सालों के लिये। यह सबक आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के लिये भी उतना ही है , जितना दूसरों के लिये. वरना तो झाड़ू है ही . लोकतंत्र में चुनाव जीतने का कोई भी सटीक फार्मूला नहीं है और ना ही सत्ता किसी की जागीर, पर दिक्कत यह है की सत्ता पाने के बाद भ्रष्ट तरीके से धन कमाने और जन सेवा की जगह जोंक की तरह आम आदमी का खून चूस कर अपनी तिजोरी भरने वाले नेता, सियासत की चुनावी बिसात पर मौके - बेमौके गढ़े जाने वाले इतिहास और अपने वजूद पर बन आने के बाद भी सबक नहीं लेते. इस तरह के नतीजों की वजह का पता लगाने का जिम्मा राजनीतिक विश्लेषकों के लिये छोड़ देते हैं और मोटे तौर पर देखते हैं तो यह पायेंगे की जनता ने गणेश परिक्रमा की प्रवृत्ति को दुत्कारा है। उसने सत्तासीन का समर्थन या केवल सत्ता विरोध जैसी वजहों से वोट नहीं किया है। पर यह भी सच है की उसे कांग्रेस से दिक्कत थी, है और रहेगी। कांग्रेसी सत्ता के अहंकार में अपने वजूद को भूल से गये हैं। उन्हें लगता है की केवल कोई एक नाम, कोई एक परिवार, और ज्यादा नहीं तो चलताउ किस्म के नारे और योजनाएं जिता देंगी। अगर ऐसा ही होता, तो शीला दीक्षित और अशोक गहलोत कभी हारते ही नहीं, उसका बेड़ा पार लगा देंते. अंग्रेज़ों की तरह फूट डालो और राज करो की तर्ज पर जनता का भरमाओ, और राज करो की नीति कांग्रेस के हार की असली वजह है। । गरीब को और गरीब बनाओ , पिछड़े को और पिछड़ा , कार्यकर्ताओं का कैडर खत्म कर दो और नीचे से उपर तक आगे बढ़ने की केवल एक ही योग्यता रखो, वो हो, रसूख व चापलूसी. दूसरों की बात तो छोड़िये, क्या राहुल गांधी तक को क्या यह पता है की कांग्रेस आज जा कहाँ रही है ? जिस शीला दीक्षित की उम्र के मद्देनजर राहुल गांधी दिल्ली में उनके शासन और तरक्की की दुहाई देते नहीं अघा रहे थे या जिस अशोक गहलोत की थोथी कल्याणकारी योजनाओं के दम पर दिल्ली राजस्थान में लौटने का गुमान कर रहे थे, दरअसल वो मृग मरीचिका भर था। कांग्रेस के भावी कर्णधार को अपने सिपहसालारों से केवल इतना भर पूछ लेना चाहिये की अपने चहेतों, सरकारी कार्यक्रमों और 2013 के चुनावी दौरों को छोड़ दिया जाये, तो ये दोनों आखिरी बार जनता के बीच कब गये थे ? शायद 2008 में. राहुल गांधी अगर कांग्रेस को बचाना चाहते हैं तो उन्हें यह सोचना होगा कि उनके लोग जवाबदेही और जिम्मेदारी लेने के लिये तैयार क्यों नहीं है ? हार के बाद इस्तीफा देना तो मजबूरी है? पार्टी को इस गत में पहुंचा देने की सजा क्या है ? राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह सोचें, अभी भी उनके पास वक्त है, वरना दिल्ली और राजस्थान के नतीजों की तरह 2014 के चुनावों में वह और उनकी पार्टी तिहाई गिनती तक भी पहुंच जाये, तो बड़ी बात होगी। अब आते हैं भाजपा पर। अगर कांग्रेस की खामियां नहीं होती, तो भाजपा कभी भी नहीं जीतती. अगर नरेन्द्र मोदी की लहर या जादू चल रहा होता, तो दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम वाली केवल साल भर पुरानी 'आम आदमी पार्टी' यों भाजपा से कदम ताल नहीं कर रही होती। सच तो यह है की ऐन चुनाव के वक़्त अगर ईमानदार छवि वाले डॉक्टर हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट नहीं करती और मतदान से ठीक 24 घंटे पहले आरएसएस और उसकी प्रोपेगंडा टीम ने यह प्रचारित नहीं किया होता की ' भाजपा ' बहुमत से सरकार बना रही है और ' आप ' को वोट देना वोट खराब करना है, तो दिल्ली में भी भाजपा नहीं 'आप' ही सबसे बड़ी पार्टी होती। मोदी का जादू होता तो छत्तीसगढ़ के नतीजे यों नहीं होते। मध्य प्रदेश शिवराज सिंह चौहान के काम काज और भलमनसाहत ने उन्हें जीत तो दिलाई ही यह मिथ भी तोड़ा की जनता केवल बदलाव के लिये वोट करती है, इसी तरह राजस्थान में वसुंधरा राजे की मेहनत और अशोक गहलोत की गफलत ने अहम भूमिका निभाई. मिज़ोरम देश के एक कोने पर है, वहां बेहद लोकल मसलों पर वोट पड़ते हैं, इसलिये 2014 के लिये वहां के नतीजों से तो नहीं पर बाकी 4 राज्यों से के नतीजों से कांग्रेस और भाजपा को यही संदेश मिलता है की 2014 के आम चुनावों से ठीक पहले का यह वक़्त खयाली पुलाव पकाकर सोने और खोने का नहीं, बल्कि सच्चे दिल से जनता से जुड़ने का है, जनता को अब जनप्रतिनिधि के रूप में नेता उर्फ दलाल उर्फ वादों और नारों का दुकानदार नहीं जनसेवक चाहिये। जाहिर है इस कसौटी पर कथित तीसरे मोर्चे सिपहसालारों को भी कसा जाना है, वरना विकल्प के रूप में उसके पास फिर झाड़ू तो है ही। जय हो जनता जनार्दन की. पांचो राज्यों की जनता को अंतत: जनतंत्र को जिताने के लिये साधुवाद!
जय प्रकाश पाण्डेय
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