
प्रचार में चमकते चेहरों का सच
जय प्रकाश पांडेय ,
Jun 22, 2011, 5:28 am IST
Keywords: Real face असली उद्देश्य Behind Government Advertisements सरकारी एड Advertisement Policy एड नीति Public जनता Jai Prakash Pandey जय प्रकाश पांडेय FnF Hindi Editorial
![]() तो क्या हम यह मान लें की आज देश की हालत इन्हीं सी- क्लास टीवी सीरियलों की तरह ही नाटकीय हो चुकी है, जिसमें हर कोई बनता तो महान है, पर हक़ीकत में वह दूसरे के खिलाफ साजिशे रचने में लगा होता है, हर किसी को दूसरे का हिसाब चुकता करना होता है. ऐसा करने में, एक दूसरे का हक मार लेने और गला काट लेने के बावजूद भी कोई खुद को ग़लत नहीं मानता , सब अपने को सही मानते हैं. जो रो रहा है सीधा है, उसे हर समय बर्दाश्त ही करना है और जो खुशहाल है वह जीवन पर्यंत वैसा ही दिखता है. सीरियलों के पात्रों के सपनों और हक़ीकत में- रील और रियल लाइफ में - ज़मीन - आसमान का अंतर होता है. यहां तक कि जो पात्र लाखों-करोड़ो ही नहीं अरबों में खेलते दिखते हैं, बड़ी महंगी कारों पर चलते हैं, हक़ीकत में उनकी जिंदगी बस और लोकल ट्रेन की यात्रा में कट रही होती है, और परदे के ये अरबपति हज़ार-दो हज़ार दिहाड़ी के लिए भी मुहताज होते हैं. देश का आम बाशिंदा भी आज इसी हालात से दो चार है. सरकार और सत्ता, संसद और हमारा महान लोकतंत्र आज उन्हीं के साथ खड़ा है, जो सक्षम हैं, धनवान हैं. मीडिया भी इन्हीं स्वनाम धन्यों के गुणगान कर रहा है, क्योंकि उसे चलाने वाले भी समाज के उसी तबके से आ रहे हैं, जिसके लिए सिद्धांत गुज़रे कल की बात और आज की बेवकूफी में शुमार होती है, पर पैसा कल भी प्रासंगिक था, आज भी है और कल भी रहेगा. ऐसे माहौल में आम जन कहां जाएं? कैसे जीए और किससे कहे ? की हालात बदलें और वह गुज़ारा कर सके.समझ में नहीं आता. एक अन्ना क्या इस देश को हज़ार अन्ना की ज़रूरत पड़ सकती है , तब जाकर कहीं उसकी सुनवाई लायक माहौल बनेगा. जब हालात इतने विषम हैं और किसी भी ईमानदार, मेहनतकश, योग्य व्यक्ति के लिए बिना भ्रष्टाचार का शिकार हुए जीवन गुजारना दूभर है, तो सरकार फिर सरकारी पैसा खर्च कर उसी जनता की आँखों में धूल कैसे झोंक रही है. एक बेहद मौजू वाक़या याद आ गया, जिसे हमारे आज के तेज-तर्रार सांसद वरूण गाँधी ने सुनाया था, जब वह सांसद नहीं हुए थे और उन्होंने भाजपा में ताज़ाताज़ा इंट्री मारी ही थी. यह बात 2004 के शुरुआती महीनों की है, जब प्रमोद महाजन की अगुवाई में भाजपा का एक बड़ा गुट ' शाइनिंग इंडिया' के एड पर सवार हो तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर समय से पहले चुनाव कराने के लिए दबाव डाल रहा था. प्रधानमंत्री आवास की उस बैठक के दौरान वरूण संयोग से वहाँ थे. अटल जी समय से पहले चुनाव कराने के पक्ष में नहीं थे, पर ब्रजेश मिश्रा और महाजन का कहना था कि एनडीए इतनी सीट तो जीत ही जाएगा कि सरकार बना ले, वरूण बोल पड़े आप लोग सरकार बनाना तो दूर अभी चुनाव हुआ तो बुरी तरह हारोगे. वहाँ मौजूद लोगों में से किसी ने वरूण गांधी की राजनीतिक समझ को कम बताते हुए समझा दिया कि यों तो हम जीतेंगे ही पर अगर कुछ सीटें कम रहीं तो बीएमडब्ल्यू तो हैं ही. बीएमडब्ल्यू यानी बहन मायावती. 13 मई 2004 को जब परिणाम आया और 11 बजते-बजते यह आभास लग गया कि अटल जी की अगुवाई वाला गठबंधन सत्ता से बाहर हो चुका है, वरूण को प्रधानमंत्री आवास से बुलावा आ गया. लंच से ठीक पहले प्रधानमंत्री आवास की उस सबसे लंबी बैठक में लगभग ढाई घंटे तक अटलजी यह जानने की कोशिश करते रहे कि वरूण को कैसे पता था कि एनडीए हारेगा. वरूण ने तब खुलासा किया. जब वह विदर्भ के दौरे पर थे, तब एक पहाड़ी के नीचे खाली पड़े खेत में महिलाओं को कुछ बीनते और बाद में उसे पास ही बह रही एक पहाड़ी नदी में छानते देख कर पता लगाया, तो जाना कि वे औरतें मवेशियों का गोबर इकट्ठा कर उसे नदी में छान कर उसमें से अनाज निकालने की कोशिश कर रही हैं और उसी से अपना और अपने परिवार का पेट भरेंगी. वरूण ने अटल जी से कहा- जिस देश में अभी ये हालात हैं, वहाँ आप कैसे सोचते हैं कि टीवी और अख़बार में चमकने वाला शाइनिंग इंडिया का एड आपको जितवा देगा. 8 साल होने को हैं. महंगाई और ग़रीबी, भ्रष्टाचार और लाचारी का आलम और बढ़ा ही है. अमीर और अमीर, ग़रीब और ग़रीब होता जा रहा है. पर सरकारी एड का बजट और भी बढ़ गया है, बस शाइनिंग इंडिया की जगह खुशहाली ने ले ली है. एड में चेहरे बदल गये हैं, पर मजमून कुछ वैसा सा ही है....अफ़सोस की सरकार के ये एड ना तो भूखों का पेट भर पाते हैं , ना ही इनसे बेरोज़गारों को रोज़गार मिलता है. इन एड की प्रासंगिकता का आलम यह है कि सरकारी नीति का शिकार हो साक्षरता का एड अँगरेज़ी अख़बारों में छपता है. अगर एड सब सच ही बोलते हैं तो कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के सेकंडों में ख़त्म हो जाने वाले एड की तुलना में बहुजन समाज पार्टी की मायावती का पूरे 5-6 मिनट वाला एड काफ़ी भारी होना चाहिए. फिर तो राहुल गाँधी को ना तो उत्तर प्रदेश के किसानों को याद करने की ज़रूरत है ना ही यूपी दौरों की. एक काबिलेगौर बात और: अगर एड देना ही है तो कम से कम उन्हें दो, वहाँ दो , जहां लोग देख सकें, जान सकें, जहां जरूरत हो. साक्षरता वाले एड की ही तरह ऑन लाइन मीडिया को एड देने की सरकार की एक पॉलिसी अभी पायलट दौर में है. यानी सरकार खुद अभी ऑन लाइन मीडिया को समझने में लगी है. पर जो नियम आया है वह 5 साल पुरानी साइट और 5 लाख विजिटर के लिए है. समझना कोई मुश्किल नहीं की 5 साल पुराना और 5 लाख क्लिक वाला कौन है. तो नये क्या करें, जिनके पास कम क्लिक हो वह कहां जाए. आख़िर यह कैसा लोकतंत्र है और कैसे हैं इसके रहनुमा, जो छोटे और कमजोरों को जीने का हक भी नहीं देना चाहते. वाकई- अन्ना की दूसरी आज़ादी की लड़ाई और महात्मा गाँधी के आख़िरी आदमी तक विकास की लौ का पहुँचना अभी बाकी है.
जय प्रकाश पाण्डेय
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