
हे भगवान ! कौन है इनका सलाहकार
जय प्रकाश पांडेय ,
Jun 07, 2011, 5:36 am IST
Keywords: Congress कांग्रेस Sonia Gandhi सोनिया गांधी Central Government केंद्र सरकार Recent issue ताजा घटनाक्रम Adviser सलाहकार Baba Ramdev बाबा रामदेव Jai Prakash Pandey जय प्रकाश पांडेय Hindi E
![]() तब से अब तक बतौर पत्रकार, बतौर राजनीति शास्त्र का अद्ध्येता देश की राजनीति पर हरदम पैनी नज़र रही और कांग्रेस को लेकर एक बारीक सा अपनापा. पार्टी अच्छा करती है तो खुशी मिलती है, और खराब करती है, तो दुख होता है. पर ये केवल निजी स्तर तक ही. अपनी इस सोच को अपने लेखन में कभी हावी नहीं होने दिया, ना ही इतने सालों तक कांग्रेस के सत्ता में होते हुए कोई लाभ उठाया. मुझे हमेशा से यह लगता रहा है कि कांग्रेस की असली ताकत नेहरू-गाँधी परिवार और उसके घोषित, अघोषित समर्थकों में निहित है, ना की सत्ता के उन चाटुकारों व दलालों के हाथों, जो कांग्रेस, और कांग्रेस की मार्फत 'देश' को आज़ादी के बाद से ही दीमक की तरह चाट रहें हैं. कट्टर कांग्रेसी अब भी कांग्रेस को आजादी की लड़ाई के दौरान पली-बढ़ी एक ऐसी पार्टी मानता है, जो गरीबों, बेसहारों, मज़लूमों से जुड़ी है और जिसका लक्ष्य जाति, धर्म से परे एक ऐसे भारत का निर्माण करना है, जहाँ हर किसी को आगे बढ़ने, खुली हवा में सांस लेने की आजादी है. पर क्या वाकई ऐसा है? जवाब में एक बड़ा 'नहीं' आता है. कांग्रेस समाज को लेकर चिंतित, उनके लिए जीने- मरने वालों की जगह, ऐसे बदगुमानों, घमंडियों, रिश्वतखोरों और बदमिज़ाजों की पार्टी बन गई है, जिसका लक्ष्य खुद का पेट और घर ही नहीं, अपनी दस पीढ़ियों तक के लिए पैसा बटोरना है. यही वजह है कि कांग्रेस की दशा और दिशा दोनों ही आज दिग्भ्रमित है. सोनिया गांधी की अहमियत आज देश के लिए चिंतित एक जननेता जो अपनी पार्टी और देशवासियों का भला करने की नीयत से सियासत में उतरी थी, और जो देश की सबसे ताकतवर और बड़ी कुर्सी 'प्रधान मंत्री' पद को ठुकरा सकती थी, वाली त्याग मूर्ति से इतर एक ऐसे गुट के अगुआ के रूप में बदल रही है, जो भारतीय इतिहास की अब तक की सबसे भ्रष्टतम सरकार में शुमार होने को अग्रसर मंत्रिमंडल समूह की संरक्षक हैं. अगर नेहरू- गांधी परिवार ही कांग्रेस का एक मात्र वोट खिंचाऊ चेहरा है, तो यह किसी जाहिल को भी समझ में आ जाएगा कि सोनिया गांधी की इस बदलती छवि से अंतत: नुकसान किसको है. मैं ज़्यादा पीछे नहीं जाना चाहता, पर सिर्फ़ एक सवाल हर कांग्रेसी से पूछना चाहता हूं की ए राजा, राडिया, बलवा, मारन, कनमोझी, कलमाडी के जो कारनामे आज उजागर हुए हैं, अगर वे अब से दो- ढाई साल पहले आम चुनावों के वक्त उजागर हो गये होते तो क्या कांग्रेस सत्ता में आती? अफसोस की यह देश गावों का, गरीबों का, प्रतीकों का देश है. इक्कीसवीं सदी में भी पेड़, नदियाँ, और पत्थर देशवासियों की आस्था के प्रतीक हैं. अपना भला हो, इसके लिए वह निर्जीव जगहों पर भी एक लोटा जल चढ़ा देता है. पर हर भावुक की तरह इसकी भी कुछ कमजोरियाँ हैं. यह बहुत जल्द नारों व वादों में बह जाता है. बहुत जल्दी किसी बात से रूठ जाता है, जितना जल्दी सिर पर चढ़ाना उतना ही जल्दी उतार भी देना....कांग्रेसियों को अगर वक्त हो तो जरा सोचें जरूर 1971 में 'इंदिरा ईज़ इंडिया एंड इंडिया ईज़ इंदिरा' वाली इंदिराजी महज 7 साल में कहां, क्यों और कैसे देश की सत्ता से ही नहीं राय बरेली तक से हार गईं. 1984 में 415 सीटें जीतने वाले मिस्टर क्लीन राजीव गांधी क्यों 1989 में सत्ता से बाहर हो गये? या अभी 2004 में शाइनिंग इंडिया का रथ भी अटल बिहारी वाजपेयी को सत्ता में नहीं लौटा पाया. सीधी सी बात है, जो कांग्रेस और सोनिया गांधी की ताकत थी, वही अब उनकी कमज़ोरी बनती जा रही है. 2004 फ़रवरी में भी मैनें लिखा था, कांग्रेस सत्ता में आ सकती है, पर केवल इसलिए की सोनिया गांधी सड़क पर हैं. 2009 में मैने फिर लिखा था की कांग्रेस की ताक़त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ईमानदारी भर है. उन्हें एनडीए ने जितना कमजोर कहा वे उतने ही मजबूत साबित हुए. इसी तरह सोनिया गांधी के विदेशी मूल को जितनी बार जितना उभारा गया, वे उतनी ही मजबूत और भारतीय सिद्ध हुईं. केवल कांग्रेस ही नहीं, विरोधयों पर भी जब निजी हमला बोला गया, तो जनता ने उसे स्वीकारा नहीं. यहां तक की नरेंद्र मोदी को 'मौत का सौदागर' कहा जाना भी गुजरात के लोगों को हजम नहीं हुआ. कांग्रेस एक बार नहीं बार-बार सत्ता के मद में वो ग़लतियाँ कर रही है, जो उसे नहीं करना चाहिए- जैसे 2 जी स्पेक्ट्रम पर पहले ही विपक्ष की जेपीसी की बात ना मानना, फिर पूरा एक सत्र बरबाद कर देश भर में थू-थू कराकर, जेपीसी बनवा देना. पहले ए राजा की तरफदारी करना, फिर उन्हें तो क्या कनिमोझी तक को जेल भिजवा देना. पहले सुरेश कलमाडी की पीठ थपथपाना फिर जेल भिजवाना. पहले प्रख्यात समाजसेवी अन्ना हज़ारे को आदर्श बताना, फिर उन्हें आरएसएस का एजेंट बताना, और अचानक से उनकी लोकप्रियता से घबरा कर उनकी बात मान लोकपाल के लिए हाई पावर समिति बना देना. फिर समिति में समाजसेवी खेमें से जुड़े लोगों की सलाह ना मानना. ताज़ा मामला बाबा रामदेव को लेकर सरकार के रवैये का है. बाबा विदेशों में जमा काले धन को भारत में लाने और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने के मसले पर सालों से चिल्ला रहे थे. पिछले दिनों उन्होंने इस मसले पर देश भर में एक लाख किलोमीटर की यात्रा की. पूरी दुनिया, सारे चैनल, इलाक़े के पोस्टर, बैनर तक बता रहे थे कि बाबा इस मसले पर अनशन करेंगे. केंद्र की कांग्रेस सरकार उस अनशन का ऩफा-नुकसान जोड़ चुकी थी, तभी उसके 4 बड़े नेता बाबा को रिसीव करने एयरपोर्ट पहुंच गये, पहले वहाँ मनाया, फिर अगले दिन 5 घंटे एक होटल में मनाया, बातचीत की लिखा पढ़ी हुई, फिर भी बाबा अनशन पर बैठे तो आधी रात पुलिस भेज उन्हें पकड़वा कर दिल्ली से बाहर भेज दिया. इस दौरान महिलाओं, बच्चों बूढ़ों पर आँसूगैस के गोले छोड़े गये, लाठियाँ भांजी गई. बाबा को दिल्ली से बाहर भेज दिया गया और 15 दिन तक राजधानी में उनके घुसने की मनाही है. जिस बाबा के सामने सरकार बिछ गई थी, वही अब आरएसएस के एजेंट, ठग और हज़ारों करोड़ के साम्राज्य के मालिक बताए जाने लगे. बाबा ने यह संपत्ति एक दिन में तो नहीं कमाई, ना ही एक दिन में अपनी पहचान बदल ली. सीबीआई, इनकम टैक्स और ना जाने कितने सरकारी विभाग उनके पीछे हैं अभी....यही नहीं अब लोकपाल की मसौदा समिति पर सरकार ' अन्ना' से भी टकराने पर आमादा है. यह ठीक है कि देश में राज्यों की राजनीति में विरोधियों को दबाने, डराने के लिए इस तरह की हरकतें होती रही हैं, पर केंद्र में 1975 से 1980 या फिर अँगरेज़ी राज के दौर को छोड़ कर ऐसा कभी नहीं देखा गया. लगता है सोनिया जी के सलाहकार इस देश की जनता की मानसिकता और प्रजातंत्र में 'लोक' की ताक़त को भूल गये हैं. वह भूल रहे हैं कि जनतंत्र में सरकार सेवक के तौर पर दिखेगी, तभी टीकेगी, जहाँ शासक बनने का भ्रम हुआ की पत्ता साफ! इस करनी पर हमेशा तो क्या अगली बार ही आप सत्ता में नहीं रहोगे.... और तब प्रजातंत्र में पुलिस के बल पर जनमत की आवाज़ को दबाने का यह प्रयोग आप पर भी दुहराया जा सकता है.
जय प्रकाश पाण्डेय
![]() |
क्या विजातीय प्रेम विवाहों को लेकर टीवी पर तमाशा बनाना उचित है? |
|
हां
|
|
नहीं
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|