
सेना को तो सियासत से बख़्श दो....
जय प्रकाश पांडेय ,
Apr 20, 2011, 6:01 am IST
Keywords: भारतीय सेना Indian Army राजनीति Politics in Promotion जनरल वी. के . सिंह General VK. Singh जन्म-तिथि विवाद Birth Controversy भ्रष्टाचार Corruption मेजर जनरल आनंद कपूर General Anand Kapoo
आज अँगरेज़ी- हिन्दी के कुछ अख़बारों के पहले पन्ने पर सबसे बड़ी खबर के रूप में भारत के वर्तमान सेना प्रमुख जनरल वी. के . सिंह की जन्म तिथि का मामला ऐसे परोसा गया है, जैसे उनकी उम्र, केवल उम्र न हो कर, देश के सीमाओं की सुरक्षा, नागरिक अधिकारों, या मानवीय मूल्यों से जुड़ा कोई मसला हो, या कि देश हित, जन- हित, सैन्य-हित से जुड़ी कोई ऐसी बात हो, जिस पर तुरंत बात नहीं की गई, तो पहाड़ टूट पड़ेगा।
आखिर जनरल सिंह 1950 में पैदा हुए या 1951 में का सरोकार किससे है? सेना की सर्विस बुक, खुद जनरल सिंह, और बमुश्किल उन 4-5 सैन्य अफसरों के अलावा, जिनका नंबर वी. के. सिंह के रिटायर होने के बाद सेना प्रमुख के लिए आता, के अलावा शायद ही कोई ऐसा और हो, जिसका वास्ता उनके जन्मदिन की तारीख से हो। पर बावजूद इसके ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे कि इसे हल नहीं किया गया, तो बहुत बड़ा नुकसान होगा। अगर यह साबित हो भी जाए कि उनकी असली जन्मतिथि फलाँ नहीं, फलाँ है, तो भी इस का सरोकार कितनों से है? क्या पूरी सेना से? कल को आने वाले सैन्य प्रमुखों से? सरकार से? आम जन से? देश की सरहदों की रक्षा कर रहे सैनिकों से? संविधान से ? अगर नहीं, तो फिर इसको इतनी तवज्जुह देने की क्या ज़रूरत है? और कौन है मसले को इस तरह मीडिया में उछालने के पीछे, यह जानना वाकई जनरल सिंह की असली उम्र जानने से ज़्यादा जरूरी है। दरअसल, पिछले कुछ दशक से भारतीय सेना, ख़ासकर भारतीय सेना का शीर्ष नेतृत्व- ब्रिगेडियर, और उसके के उपर के पदों पर बैठे अफसरान - की आपसी गुटबंदी, भाई-भतीजा और भ्रष्टाचार के साथ-साथ तरक्की पाने की उस गला काटू होड़ का शिकार हो गई है, जहां शौर्य और बहादुरी की जगह निजी निष्ठा और चाटुकारिता ने ले ली है। जनरल सिंह के जन्मदिन का मसला सेना में घुन की तरह से लगी इन बुराइयों का ही नतीजा है। इस मसले पर और विस्तार से चर्चा करने से पहले आइए जानें कि वाकई जनरल सिंह का मामला क्या है। 10 मई 1951 को हरियाणा राज्य के भिवानी जिले के बोपोरा गांव में विजय कुमार सिंह यानी आज के जनरल वी. के. सिंह, का जन्म हुआ. खानदान 3 पुश्तों से सेना में था। पिताजी सेना में कर्नल थे, तो दादा जूनियर कमीशंड अफ़सर। विजय कुमार सिंह की शुरुआती पढ़ाई पिलानी राजस्थान में हुई। जब वह छोटे थे, तभी से पारिवारिक परंपरा की तरह उनका सपना भी सेना की सेवा ही था, लिहाजा सेना में अफसर के तौर पर भरती होने की उम्र तक पहुंचते ही वह संघ लोक सेवा आयोग की प्रतियोगिता परीक्षा बैठे और बेहतर नंबरों से पास हो सेना में आ गये। वह महज 20 साल के थे जब उन्हें राजपूत रेजीमेंट की सेकंड बटालियन में कमीशन मिला। सेना में ही उन्हें डिफेंस सर्विस स्टाफ कालेज से स्नातक की डिग्री मिली और अमेरिका के प्रतिष्ठित यूनाइटेड स्टेट्स इन्फेंटरी स्कूल से उन्होंने रेंजर्स कोर्स किया। सेना की गरिमा और चुनौतियों के प्रति उनकी सेवाओं का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ लगी सीमा पर तैनाती के अलावा बांग्लादेश युद्ध में भी हिस्सेदारी की। वह एक समय राष्ट्रपति के एडीसी भी रहे और जब संसद पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के बाद सरहद पर 'आपरेशन पराक्रम' के तहत सेना की तैनाती की गई, तो उसके अगुआ भी रहे। सेना में अपनी सेवाओं की बदौलत वे ना केवल परम विशिष्ट सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल और युद्ध सेवा मेडल से नवाज़े गये, बल्कि सेना प्रमुख बनने से पहले पूर्वी कमान, खरगा कॉर्प्स, राष्ट्रीय रायफ़ल्स फोर्स की नुमाइंदगी भी की। हमारे आप के घर के लड़कों की तरह ही विजय कुमार सिंह ने भी चूँकि स्कूल की पढ़ाई पूरी करते ही एनडीए का फार्म भरा था, और उस समय फार्म भरने के लिए जिससे मदद ली थी, उसकी ग़लती से उनकी जन्म-तिथि केवल एक जगह 10 मई 1950 अंकित कर दी गई। जब सिंह एनडीए में सलेक्ट हो गये तब यूपीएससी ने 1965 में हुई इस गड़बड़ी की जाँच भी कर ली थी, और हाई स्कूल के सर्टिफिकेट से लेकर हर जगह उनकी जन्म-तिथि के 10 मई 1951 होने की पुष्टि भी कर ली थी, पर सेना के रिकार्ड में यह दर्ज नहीं हुआ। इस बीच जैसे-जैसे सिंह अपनी कर्तव्यनिष्ठा, बहादुरी और शौर्य से तरक्की करते गये, गुटों में बँटे कुछ वरिष्ठों ने साजिश के साथ क्लर्क लेवल की इस ग़लती को सुधारने की जगह दबा कर रखा। हालांकि सिंह इस मसले को शुरुआत से ही अपने वरिष्ठों के सामने उठाते रहे, और एक वक्त तो ऐसा भी आया, जब सिंह को अपनी तरक्की के लिए वरिष्ठों का यह दबाव मानना पड़ा कि सेना ज्वाइन करते समय फार्म पर भरी जन्म तिथि उन्हें मंजूर है.....पर दबाव की वह स्वीकारोक्ति उनके जीवन की सचाई तो नहीं बदल सकती थी। इसीलिए जब वह सेना प्रमुख बने तो इस मसले को उठाया। क़ानून मंत्रालय ने सेना के कागज़ातों से लेकर यू पी एस सी के दस्तावेज़ खंगाले और जनरल सिंह की बात सही पाई। पर उनके विरोधी इस पर चुप बैठने की जगह अपनी कलई खुलने के डर से अभी भी ज़ोर लगाए हैं। .....तो सेना में फैली लालफीता शाही और सियासत का यह हाल उन आला अफसर तक को लेकर है, जिनके पद और नेतृत्व पर हमारा कल टिका है। क्या है यह? क्यों सेना अपने सरमायदारों, अफसरों और सैनिकों के साथ ऐसा बरताव करती है। सेना से जुड़ी एक और असली घटना, जिसका वास्ता मुझसे भी पड़ा था, और जिसके खुलासे से आप सेना की उपरी सतह पर फैली अराजकता और राजनीति का अंदाज़ा लगा सकते हैं। सन 2008- 2009 की बात है, मेरे एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र श्रीकांत अस्थाना का फ़ोन आया। वह मेरठ के अपने एक साथी मित्र के करीबी रिश्तेदार, जो सेना में काफ़ी बड़े पद पर थे के लिए मुझसे मदद चाहते थे। मदद बहुत बड़ी नहीं थी,पर काफ़ी महत्वपूर्ण थी, ख़ासकर मेजर जनरल आनंद कपूर के लिए.( श्रीकांत जी के मित्र के करीबी रिश्तेदार.) हुआ यह था कि मेजर जनरल आनंद कपूर को आर्डिनेंस कोर का महानिदेशक बनना था। अपनी बाकी बची सेवाओं के लिहाज से अगर वह इस पद पर आ जाते तो वरिष्ठता के क्रम में सेना प्रमुख के लिए भी दावेदार हो सकते थे। वे लोग, जो आनंद कपूर के तरक्की पाने को अपने लिए काँटा समझते थे, ने सीबीआई में मेजर जनरल कपूर के पास बेहिसाब संपत्ति की शिकायत डाली और अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उनके घरों पर छापे डलवा दिए और जितनी भी संपत्ति पाई गई, तब की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 50 करोड़, का केस सीबीआई ने रजिस्टर किया। श्रीकांत जी और उनके मित्र मुझसे बस इतना चाहते थे कि मैं सीबीआई में बड़े पद पर नियुक्त अपने एक मित्र की मदद केवल इस मामले का निस्तारण कराने के लिए लूं। वे लोग और खुद मेजर जनरल कपूर इस बात के लिए राज़ी थे कि अगर वे दोषी पाए जाएं, तो उन्हें सज़ा मिले, पर मामला लटकाया ना जाए। उनका मानना था कि सेना में उनके विरोधी अफसरों ने जानबूझकर उनके खिलाफ साजिशन छापे डलवाकर मामला पेंडिंग करा दिया है, ताकि उनका प्रमोशन ना हो सके। जाहिर सी बात है, नियुक्ति समिति केवल इस बिना पर, मेजर जनरल कपूर का दावा नहीं देखती कि उनके खिलाफ सीबीआई में केस पेंडिंग है। मैंने मदद की पहल करने से पहले सेना के अपने परिचित कुछ अफसरों से बात की। मेजर जनरल आनंद कपूर के बारे में पता किया, पता चला जनाब के पास हरियाणा के शहरी इलाक़ों में इतनी ज़मीन थी कि कालेज के दिनों में भी मर्सीडीज से चलते थे। पैसा है, पर भ्रष्ट नहीं हैं, आख़िर वे खुद भी तो कह और चाह रहे की दोषी हूं, तो सज़ा दे दो, पर मामला लटकाओ मत, इससे पद का नुकसान तो हो ही रहा, धन और प्रतिष्ठा पर भी चोट लग रही। सब कुछ बूझ परख कर मैंने सीबीआई के अपने मित्र महोदय से बात की। उन्होंने सीबीआई के लौह खोल का हवाला दिया, कहा- इस मामले को रक्षा मंत्री, प्रधान मंत्री तक जानते हैं, ऐसे में , जब जाँच उनके पास नहीं है, वह क्या कर सकते हैं? मेरे इस अफ़सर मित्र की ईमानदारी और कार्यक्षमता पर कभी कोई सवाल नहीं उठा सकता था। मैं जानता था, अगर मामला उनके पास होता, और मेजर जनरल आनंद कपूर निर्दोष होते, तो कोई भी, कितना भी रसूख् लगाकर उनका केस पेंडिंग नहीं रखवा सकता था, और अगर दोषी होते, तो बचते भी नहीं, पर इतना तो पक्का था, केस यों लटकता भी नहीं। अब जब जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि का मामला सामने आया, तो अचानक मुझे 3-4 साल पुरानी घटना याद आ गई। मेजर जनरल आनंद कपूर के मामले का क्या हुआ मुझे पता नहीं, कोई नहीं जानता की जनरल सिंह के मामले में रक्षा मंत्रालय, देश के नेता, देश चलाने वाले क्या फ़ैसला लेंगे। पर इतना तय है कि हमारी सेना में नीचे से उपर तक कहीं ना कहीं कुछ तो गड़बड़ है, सब कुछ सही नहीं....पर दुनिया के दूसरे सबसे बड़े सैन्य-दल की सेहत के लिए यह माहौल तो ठीक नहीं, सो जो भी ज़िम्मेदार हैं, उनसे यही गुज़ारिश- सेना को तो सियासत से बख़्श दो।
जय प्रकाश पाण्डेय
![]() |
क्या विजातीय प्रेम विवाहों को लेकर टीवी पर तमाशा बनाना उचित है? |
|
हां
|
|
नहीं
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|